बिहार के इस मकबरे पर शेरशाह सूरी भी लगाते थे हाजिरी, शेरघाटी के ताजमहल के नाम से है प्रसिद्ध, जाने खासियत

sher shah suri used to mark attendance on this tomb of gaya

गया जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर शेरघाटी अनुमंडल के हमजापुर गांव स्थित हजरत कमर अली सुल्तान मकबरा अपने आप में एक इतिहास है।

मोरहर नदी के किनारे बने इस मकबरा को शेरघाटी का ताजमहल भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि मुगलकालीन शासक औरंगजेब के द्वारा इस मकबरे का निर्माण कराया गया था।

क़मर अली और सुल्तान अली की कब्रें 400 साल से अधिक पुरानी बताई जाती हैं। दो अली मुगल बादशाह औरंगजेब के सेनापति थे जो यहां सेना के जवानों के रूप में आए लेकिन यहां बस गए।

अफगानी कला का है बेहतरीन नमूना

गया के इस मकबरे का इतिहास जानने के लिए पुरातत्व विभाग के अधिकारी भी यहां कई बार आ चुके हैं। इसके संरक्षण की बात कही है। कहा जाता है इस मकबरे के निर्माण में जो कलाकारी पेश की गई है।

वह अफगानिस्तान के कला का बेहतरीन नमूना है। मुगल कालीन शासक के दौर में भारत में जितने भी मस्जिद या मकबरा बनाया गया था। उसी तर्ज पर इस मकबरा का निर्माण कराया गया था। इस मकबरे को बनाने में एक भी सरिया का प्रयोग नहीं किया गया है।

कई राज्यों यहां आते हैं लोग 

आज इस मकबरे में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल से लोग यहां आते हैं। यहां माथा टेकते हैं। सच्चे मन से याद करने से यहां लोगों के मन्नते भी पूरी होती है। यह मकबरा हिंदू मुस्लिम एकता का मिसाल है।

यहां सभी धर्म के लोग अपने परेशानियां लेकर आते हैं। उनका परेशानी दूर होता है। कहा जाता है अपने परेशानी को दूर करने के लिए शेरशाह सूरी भी यहां हाजिरी लगाने आया करते थे।

कई दिनों तक शेरशाह सूरी का शेरघाटी में ठहराव हुआ था और उनका सामना एक शेर से हुआ था। शेरशाह सूरी अपने तलवार से शेर को दो टुकड़े में कर दिए थे। जिसके बाद से गया के इस शहर का नाम शेरघाटी पड़ा।

कहते है शेरघाटी का ताजमहल 

न्यूज़ 18 लोकल से बात करते हुए समाज सेवी मोहम्मद अली बताते हैं की इस मकबरा के इतिहास को जानकर पुरातत्व विभाग के अधिकारी भी पहुंच चुके हैं।

इस मकबरा को शेरघाटी का ताजमहल भी कहा जाता है। क्योंकि यह मोरहर नदी के तट के किनारे बसा हुआ है। देखने मे भी ताजमहल जैसा ही दिखता है। यहां सभी धर्म के लोग आते हैं. उनकी मन्नते भी पूरी होती है।

मकबरा के खादिम सैयद कासिम अख्तर बताते है यह बहुत पुराना मकबरा है और यहां शेरशाह सूरी का भी आगमन हो चुका है। शेरशाह सूरी के नाम से ही शेरघाटी शहर का नाम पड़ा।