बिहार के विश्विद्यालयों में ग्रेजुएशन की हजारो सीटें खाली, मेरिट लिस्ट वाले स्टूडेंट भी नहीं ले रहे एडमिशन, जानिए कारण
बिहार में विश्विद्यालयों और कॉलेजों की शिक्षा व्यवस्था का हाल बुरा हो रखा है। इसका ताजा उदहारण है की बिहार के विश्वविद्यालयों में आधी से ज्यादा सीटें खाली रह जा रही हैं। मेरिट लिस्ट में सेलेक्ट होने के बावजूद भी स्टूडेंट्स अपना एडमिशन नहीं करवा रहे हैं।
बिहार के सभी विश्वविद्यालयों में एडमिशन के आंकड़ों को देखें तो बीए में मानविकी संकाय के विषयों में सीटें ज्यादा खाली हैं। आईये जानते है बिहार के किस यूनिवर्सिटी में कितनी सीटें खाली है और इसके पीछे अहम वजह क्या है?
बिहार यूनिवर्सिटी में हर साल 50 हजार सीटें रह जाती हैं खाली
सबसे पहले बात करते है बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में स्थित बीआरए बिहार विश्वविद्यालय की। ये यूनिवर्सिटी कभी बिहार का गौरव हुआ करता था। लेकिन आज हालत ऐसे है कि हर साल हजारों छात्र दूसरे विश्वविद्यालय में पढ़ने चले जाते हैं।
इस साल भी मेरिट लिस्ट में नाम आने के बाद भी 30 हजार छात्रों ने दाखिला नहीं लिया है। सत्र नियमित नहीं होने और रिजल्ट समय पर जारी नहीं होने के कारण छात्र दूसरे विश्वविद्यालयों की ओर रुख कर रहे हैं। इससे विश्वविद्यालय की साख को बट्टा लग रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन के पास छात्रों के पलायन पर कोई ठोस जवाब भी नहीं है।
पूर्णिया यूनिवर्सिटी में 10 हजार सीटें खाली
पूर्णिया विश्विद्यालय बिहार का नवीनतम यूनिवर्सिटी है। सीबीसीएस सिस्टम के तहत पूर्णिया विश्वविद्यालय में 4 वर्षीय स्नातक कोर्स में नामांकन तिथि समाप्त होने के बाद भी 9 हजार सीटों पर नामांकन नहीं हुआ है, वहीँ 27 हजार से भी ज्यादा छात्र नामांकन से वंचित रह गए।
बता दे की पूर्णिया यूनिवर्सिटी में स्नातक की 46,891 सीटों में से लगभग 37 हजार सीटों पर ही नामांकन हो पाया, जबकि इसके लिए कुल 64,200 आवेदन प्राप्त हुए थे। विश्वविद्यालय में नामांकन कम होने के कई वजह हैं। विश्वविद्यालयों से काफी निजी कॉलेजों का संबंधन हो गया है। ऐसे में सीटें भरना संभव नहीं है।
आज के समय में सभी को रोजगारपरक शिक्षा चाहिए। इसके अलावा वोकेशनल कोर्सों के प्रति छात्रों का रुझान बढ़ा है। इस बाबत डीएसडब्ल्यू प्रो मरगूब आलम ने बताया कि पिछले साल स्नातक की लगभग 14 हजार सीटें खाली रह गई थीं। इन सीटों पर छात्र-छात्राओं का नामांकन नहीं हो पाया था। इस बार 9 हजार से ज्यादा सीटें खाली रह गई हैं।
मिथिला यूनिवर्सिटी जा रहे अधिकतर छात्र
हालाँकि नामांकन के मामले में मिथिला यूनिवर्सिटी की स्थिति इन दोनों विश्विद्यालयों से बेहतर है। मालूम हो की बिहार यूनिवर्सिटी से भी अधिकतर छात्र मिथिला यूनिवर्सिटी की ओर रुख कर रहे हैं। वहां दाखिला लेनेवाले 20 प्रतिशत छात्र बीआरएबीयू क्षेत्र के जिलों से होते हैं।
इस साल भी इतने ही छात्रों ने मिथिला विवि में स्नातक में दाखिले के लिए आवेदन किया था। मिथिला विवि में सत्र लगातार नियमित चल रहा है, जिससे वहां स्नातक की डिग्रियां समय पर मिल जा रही हैं। वहीँ बिहार विवि में सत्र नियमित करने का अभी प्रयास ही चल रहा है। वहाँ स्नातक के अलावा बीएड की परीक्षा भी देर से हुई है।
इसके पीछे क्या है मुख्य वजह?
बिहार के ज्यादातर मेधावी छात्र राज्य से बाहर चले जाते हैं। इस वजह से यहाँ के विश्विद्यालयों में सीटें खाली रह जाती हैं। बिहार के विद्यार्थी दिल्ली विश्वविद्यालय, बीएचयू, उत्तर प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों सहित दूसरे राज्यों में पढ़ने जाते हैं। विश्वविद्यालयों में देर से चल रहा सत्र और शिक्षकों की कमी भी इसके पीछे का एक बड़ा कारण है।
बिहार के सभी विश्वविद्यालयों में नामांकन के आंकड़ों को देखें तो बीए में मानविकी संकाय के विषयों में सीटें ज्यादा खाली हैं। वहीँ विज्ञान विषय की सीटें अपेक्षाकृत कम खाली हैं। कुछ ऐसे विषय हैं, जिसे छात्र पसंद नहीं कर रहे हैं। पाली, प्राकृत, पर्सियन, संस्कृत, बंगाला, मगही, उर्दू, मैथिली, हिन्दी और अंग्रेजी विषयों में ज्यादा नामांकन नहीं है।
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