बिहार: टेम्पो से बेटी को कोचिंग पंहुचा कर सवारी ढोती है पूनम, पति की जिम्मेदारी भी उठायी

Poonam Is Taking Responsibility Of Husband Along With Education Of Son And Daughter

कहते हैं महिलाओं की कलाई नाजुक होती है। लेकिन, जब बात एक मां के सामने तरसते हुए बच्चे और एक पत्नी के सामने लाचार पति की हो, तो उसी कलाई में इतनी ताकत भर जाती है कि देखनेवालों की आंखें फट जाती हैं।

यही मिसाल पेश कर रही हैं गोराडीह प्रखंड के सारथ गांव की रहनेवाली पूनम देवी। वह भागलपुर की इकलौती टेंपो चालक हैं। सुबह से शाम तक जगदीशपुर-भागलपुर रूट पर टेंपो चलाती हैं और 600 से 700 रुपये तक प्रतिदिन कमा रही हैं।

इस कमाई से बेटी और बेटा को पढ़ा रही हैं, तो बीमार पति का इलाज भी करा रही हैं। घर के सारे खर्चे खुद ही उठा रही हैं।

ऐसी है इनकी रोज की दिनचर्या

पूनम देवी बताती हैं कि वह प्रतिदिन सुबह सात बजे घर से बेटी को लेकर टेंपो से निकलती हैं। जगदीशपुर स्थित एक निजी कोचिंग में उसे पहुंचाने के बाद जगदीशपुर-भागलपुर रूट पर टेंपो से सवारी ढोती हैं।

12 बजे तक जगदीशपुर वापस होकर बेटी को कोचिंग से रिसीव कर घर चली जाती हैं। घर में खाना खाकर थोड़ा आराम करती हैं और फिर दोपहर दो से शाम छह बजे तक उक्त रूट पर टेंपो चलाती हैं। इसमें उनकी प्रतिदिन की कमाई 600 से 700 रुपये हो जाती हैं।

Poonam Devi, a resident of Sarath village of Goradih block with husband and children
पति और बच्चों के साथ गोराडीह प्रखंड के सारथ गांव की रहनेवाली पूनम देवी

पति की लाचारी के कारण पकड़ा हैंडल

पूनम देवी के पति देवेंद्र चौधरी पिछले तीन-चार साल से बीमार हैं। उनके पैर में सुनबहरी बीमारी है। पूनम ने बताया कि पूर्व में उन्होंने सावन में बासुकीनाथ धाम में चाय की दुकान चला कर कुछ पैसे जमा किये।

उस पैसों से भैंस खरीदी. लेकिन, पति के बीमार हो जाने के बाद घर की हालत कमजोर होने लगी। फिर भैंस बेच कर टेंपो खरीद लिया। शुरू में पांच-छह माह ड्राइवर से चलवाया। लेकिन, इसके बाद खुद ही हैंडल संभाल लिया।

डॉक्टर ने कहा है, 3 साल और चलेगा इलाज

पूनम देवी का कहना है कि पति का नियमित इलाज भागलपुर के एक चिकित्सक से करा रही हैं। डॉक्टर बोले हैं कि दो-तीन साल और इलाज चलेगा. उन्हें इस बात की उम्मीद है कि तीन साल बाद पति पहले जैसा चंगा हो जायेंगे।

इसके बाद घर की स्थिति में और भी सुधार होगा। वह चाहती हैं कि उनकी 11वीं में पढ़नेवाली बेटी और पांचवीं कक्षा में पढ़नेवाले बेटा इतना पढ़-लिख ले कि उन्हें यह मलाल ना रहे कि बच्चे के लिए कुछ नहीं कर पायीं। वह अपने काम से संतुष्ट हैं।