जाने बिहार को: समुद्र मंथन वाले मंदार पर्वत पर शुरू हुआ रोपवे, पर्वत पर कई धार्मिक स्थल मौजूद
इतिहास में नदियों और पर्वतों की विशेष भूमिका रही है और बिहार के बांका जिले में ऐसा ही एक पर्वत है जो विश्व-सृष्टि का एकमात्र मूक गवाह है। बौंसी से करीब 5 किलोमीटर उत्तर में मंदार पर्वत स्थित है जिसकी ऊंचाई करीब 700 फीट है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह पर्वत बहुत पवित्र है, स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार इसका संबंध अमृत मंथन (समुंद्र मंथन) से है, जिसके कारण इसका धार्मिक महत्व है और यह श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है।
मंदार पर्वत से हुई थी समुंद्र मंथन
हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि दैत्यराज बलि का राज्य तीनों लोकों पर हो गया था जिससे तमाम देवतागण उससे भयभीत रहते थे। इस परिस्थिति में देवताओं की शक्ति बढ़ाने के लिए भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी कि आप लोग असुरों से दोस्ती कर लें और उनकी मदद से क्षीर सागर को मथ कर उससे अमृत निकाल कर उसका पान कर लें।
14 रत्न हुए थे प्राप्त
यह समुंद्र मंथन मंदार पर्वत और बासुकी नाग की सहायता से किया गया, जिसमें कालकूट विष के अलावा अमृत, लक्ष्मी, कामधेनु, ऐरावत, चंद्रमा, गंधर्व, शंख सहित कुल 14 रत्न प्राप्त हुए थे। श्रावण मास में हुए इस समुंद्र मंथन में कालकूट विष निकला था जिसका पान भगवान शिव ने किया था।
शुरू हुआ रोपवे
बिहार के बांका जिले के बौंसी स्थित मंदार पर्वत (Mandar Hill) पर मुख्यमंत्री नितीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने रोप-वे का उद्घाटन किया, 377.36 मीटर लंबे इस रोपवे से अब मंदार की वादियों का आनंद सैलानी ले सकेंगे। आपको बता दे की राजगीर के बाद बिहार का यह दूसरा रोपवे है।
चार सीटर रोपवे में कुल आठ केबिन तैयार किया गया है, पर्यटन विभाग द्वारा बने नवनिर्मित रोपवे को अब जल्द ही सैलानियों के लिए खोल दिया जाएगा। पैदल पर्वत पर चढ़ने में सैलानियों को करीब 1 घंटा का समय लगता है, वहीं अब 4 मिनट में पर्वत तराई से पर्वत शिखर पर पहुंच पायेंगे।
पापहरणी
मंदार पर्वत की तलहटी में एक तालाब है, जो पापहरणी के नाम से विख्यात है. बताया जाता है कि इस तालाब में स्नान मात्र से जन्म जन्मांतर के पाप मिट जाते हैं. यही वजह है कि विभिन्न महत्वपूर्ण तिथियों पर यहां स्नान के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है. पापहरणी के बीचो बीच महाविष्णु और महालक्ष्मी का एक मनोरम मंदिर है.
सीता कुंड
पर्वत के मध्य में सीता कुंड स्थित है. जहां सालों भर जल मौजूद रहता है. किंवदंती है कि वनवास के क्रम में मां सीता ने यहां पर रुक कर पूजा अर्चना की थी. ऐसी मान्यता है कि यहां माता सीता ने स्नान भी किया था.
काशी विश्वनाथ मंदिर
पर्वत तराई पर काशी विश्वनाथ मंदिर है, जानकारों के अनुसार मंदार पर्वत पर निवास पूर्ण कर जब भगवान शिव वापस काशी लौटने लगे, तब भगवान मधुसूदन के प्रेमवश उन्होंने अपने हाथों से पर्वत शिखर पर शिवलिंग को स्थापित किया था जो आज भी विद्यमान है।
जैन मंदिर
पर्वत की चोटी पर दो जैन मंदिर स्थित है. यहां भारी मात्रा में जैन तीर्थयात्री भगवान वासुपूज्य की पूजा के लिए आते हैं. ऐसा माना जाता है कि यह भगवान वासुपूज्य की निर्वाण भूमि है. इसके अलावा पर्वत मध्य में शंख कुंड, गुफा में नरसिंह भगवान की प्रतिमा, आकाश गंगा, कामाख्या योनि कुंड, मधु का मस्तक, पर्वत शिखर पर विभिन्न मंदिर सहित अन्य कुंड और मूर्तियों के भग्नावशेष देख सकते हैं।


