बंपर पैकेज छोड़ गाँव लौटा मैकेनिकल इंजीनियर,बैठाई अपनी इंडस्ट्री अब दे रहे हैं अन्य को रोजगार

leaving the job worth lakhs the mechanical engineer returned to the village

उत्तराखंड का एक इलाका जहां के लोग बेरोजगारी से परेशान हो चुके हैं चुनौती इतनी गंभीर हो चुकी है कि वहां की युवा पीढ़ी अब इससे परेशान हो चुके हैं|

लेकिन एक अच्छी बात यह भी है कि वहां के जो पढ़े लिखे लोग हैं वह नौकरी का पीछा छोड़ बागवानी कर अपने से रोजगार बना रहे हैं इससे उनकी अच्छी आमदनी भी हो रही है|

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इंजीनियर की नौकरी छोड़ कर रहे खेती

महेंद्र दे रहे हैं सीख

इस बीच उत्तराखंड के चमोली जिले के दशोली ब्लॉक के सरतोली गांव के रहने वाले महेंद्र सिंह बिष्ट युवाओं को बागवानी से स्वरोजगार करने की सीख दे रहे हैं. पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर महेंद्र ने अपने दिल की सुनी और लाखों का पैकेज छोड़ वह अपने गांव लौट आए.

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हो रही है अच्छी आमदनी

महेंद्र बिष्ट के सफलता को देखते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकार इनको पुरस्कृत भी कर चुकी है, साथ ही उन्हें देख क्षेत्र के बेरोजगार युवा भी बागवानी से स्वरोजगार करने का मन बना रहे हैं|

10 लाख का पैकेज छोड़कर कर रहे हैं किसानी 

जानकारी के लिए बता दें कि महेंद्र भी गांव के अन्य युवाओं के जैसे 17 साल पहले बेहतर जिंदगी की चाह में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर दिल्ली चले गए थे|

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सब्जी की खेती और दुग्ध उत्पादन

जहां वह ओमैक्स ऑटो लिमिटेड कंपनी में प्रोडक्शन मैनेजर के पद पर कार्य कर रहे थे. उनका पैकेज 10 लाख रुपये से ज्यादा था| लेकिन महेंद्र इस जॉब से खुश नहीं थे इसीलिए इन्होंने रुक बदला

गांव के लोगों को देखकर बदला मन

बता दें कि बीते साल 2019 में सितंबर के महीने में पलायन रोकने की इच्छा से महेंद्र अपने गांव लौटे और गांव वाले की बंजर पड़ी दो सोनाली जमीन 20 साल के लिए लीज पर ली जमीन पर सब्जियों के साथ दूध का भी उत्पादन करने लगे|

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20 सालों के लिए लीज पर लेते हुए सब्जियों की खेती शुरु कर दी

महेंद्र की बेहतर बागवानी के कामों को देखते हुए इंडियन सोसाइटी ऑफ हॉर्टिकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें ‘देवभूमि बागवानी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

महेंद्र की सोच को सलाम

महेंद्र सिंह बिष्ट ने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में रोजगार को महज नौकरी से जोड़कर देखा जा रहा है. ऐसे में पहाड़ी क्षेत्रों में नौकरी की सीमित संभावनाएं हैं, जिससे राज्य से पलायन बढ़ रहा है. इसे देखते हुए मैंने प्रयास शुरू किया है|

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महेंद्र ने अपने जमीन पर 200 नींबू और 50 कीवी के पौधे लगाये गये हैं. साथ ही मौसमी सब्जियों के साथ ही पॉलीहाउस में बेमौसमी सब्जियों व दुग्ध उत्पादन कर स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार देने के साथ ही मैं 60 हजार प्रतिमाह की आय अर्जित कर रहा हूं|