बिहार के युवा जाली प्रणाली से कर रहे मुर्गी पालन, कम खर्च में हो रहा ज्यादा फायदा
पोल्ट्री का व्यवसाय ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार का एक सफल माध्यम बन रहा है। इस व्यवसाय से जुड़कर कई युवक एक बेहतर भविष्य के साथ एक मोटी कमाई कर रहे हैं।
वहीं कुछ ऐसे भी युवक हैं, जो बड़े शहरों में एक अच्छी सैलरी की नौकरी छोड़कर पोल्ट्री के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। इनमें से एक बिहार राज्य के कैमूर जिले के कबिलासपुर गांव के रहने वाले 25 वर्षीय युवक स्कंद सिंह भी हैं।

विवेक पिछले ढाई साल से मुर्गी एवं मत्स्य पालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। वह मुर्गी पालन आधुनिक तकनीक से कर रहें है। जिसमें मुर्गी पालन जमीन पर नहीं बल्कि कुछ ऊंचाई पर जाली प्रणाली से किया जाता है। इस माध्यम से वे कम लागत में अधिक मुनाफा कमा रहे हैं, आइए जानते हैं कि जाली प्रणाली क्या है और कैसे वह लाभ उठा सकते है।
जाली प्रणाली से मुर्गी पालन में समय व पैसे की बचत
स्कंद सिंह जाली प्रणाली के तहत पिछले दो महीने से क्रोईलर मुर्गी का पालन कर रहे हैं। ‘किसान तक’ से बात करते हुए वे बताते हैं कि जाली प्रणाली से पहले वह जमीन पर ही मुर्गी पालन करते थे।
उस दौरान 4 बाई 16 का एक बेड तैयार करने में तकरीबन दो से ढाई हजार रुपये तक खर्च आता था और यह प्रक्रिया हर 40 से 45 दिन में करनी होती थी।
वहीं जाली प्रणाली से 4 बाई 16 का एक बेड तैयार करने में करीब तीन हजार रुपए तक खर्च आता है और यह आसानी से तीन साल तक चल जाता है।

इसके साथ ही इतनी एरिया में करीब जाली प्रणाली से 800 से 900 तक मुर्गी का पालन किया जा सकता है। वहीं जमीन पर एक हजार तक मुर्गी आसानी से रह सकती हैं। विवेक कहते हैं कि इस प्रणाली से समय की भी बचत है।
यह अपने अनुभव के अनुसार बताते हैं कि जमीन पर एक स्लॉट डालने के बाद दूसरा स्लॉट डालने से पहले फिर से बेड तैयार करने में करीब पांच दिन का समय लग जाता है। जबकि इस प्रणाली में ऐसा कुछ नहीं है. इसमें आज स्लॉट खत्म हुआ, अगले दिन सफाई करके तीसरे दिन नया स्लॉट डाल सकते हैं।
साल की कर रहे हैं अच्छी कमाई
कोरोना काल से पहले दिल्ली में ग्राफिक्स डिजाइन से जुड़ी एक कंपनी में नौकरी कर रहे विवेक नौकरी छूटने के बाद कोरोना काल में घर वापस आए थे। उसके बाद से करीब ढाई साल से देसी मुर्गी पालन, क्रोइलर एवं मत्स्य पालन से जुड़े हुए हैं।

साथ ही घर से ग्राफिक डिजाइन से जुड़े कार्य भी कर रहे हैं। और साल के करीब चार लाख रुपए से अधिक की कमाई कर रहे हैं और वे मानते हैं कि अगर सिस्टम से मत्स्य एवं मुर्गी पालन किया जाए तो इससे एक बढ़िया इनकम हो सकता है।
जाली प्रणाली से सांप, बिल्ली का खतरा हो जाता है कम
जाली प्रणाली से मुर्गी पालन करने में यह फायदा है कि इस प्रणाली के तहत सांप,बिल्ली और बीमारी का खतरा कम हो जाता है। यह प्रणाली बनाने के लिए बांस और प्लास्टिक वाली जाली की जरूरत होती है।
इसे करीब जमीन से तीन से साढ़े तीन फीट ऊंचा बनाया जाता है। इसमें बांस की मदद से एक बेड तैयार किया जाता है और उसके ऊपर प्लास्टिक का जाली लगा दिया जाता है।

यह जाली इस तरह लगाई जाती है, जिसमें कोई जानवर प्रवेश न कर सके। इस विधि में हर रोज साफ सफाई करनी होती है। इस प्रणाली के बारे में कैमूर जिले के पशु विभाग की अधिकारी डॉ रानी देवी कहती हैं कि जाली प्रणाली से मुर्गी पालन करने में बीमारी का खतरा कम हो जाता है। वहीं जमीन पर तैयार होने वाली एक किलो मुर्गी की तुलना में उनकी ग्रोथ जल्दी होता है।



