छठ के मौके पर जानिए बिहार के डेढ़ लाख साल पुराने सूर्य मंदिर के बारे में, वास्तुकला चौंकाने वाला!

NextDesk

Umga Sun Temple Bihar: हिंदू धर्म में छठ पूजा विशेष महत्व है, खासतौर से बिहार में इस पर्व को काफी ज्यादा आस्था के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा के दिन सूर्यदेव और छठी मां की पूजा की जाती है। इस दौरान 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास रखा जाता है।

वैसे तो सूर्य उपासना का यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता रहा है लेकिन इंटरनेट के विस्तार के बाद से यह पर्व अब पूरी दुनिया में काफी लोकप्रिय है।

ऐसे में आज के इस पोस्ट में हम आपको इस छठ पर्व के मौके पर सूर्यदेव के एक अद्भूत अजीब और चमतकारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जो बिहार में ही स्थित है लेकिन इसके बारे में काफी कम लोगों को जानकारी है –

वैसे तो सूर्य मंदिर के बारे में सोचते ही कोणार्क का सूर्य मंदिर दिमाग में आ जाता है लेकिन बिहार में भी एक ऐसा ही सूर्य मंदिर है। यह मंदिर बिहार के औरंगाबाद जिले से 18 किलोमीटर अंदर स्थित है।

चमत्कारी है यह मंदिर

ये मंदिर बहुत ही अद्भूत और चमतकारी है। छठ पर्व पर इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ इक्कठा होती है। बिहार राज्य के आलावा भी यहां दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं और रहस्य हैं जिन्होंने आज तक अचंम्भे में डाला हुआ है। जिस पर विश्वास करना भी मुश्किल हो जाता है।

कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण डेढ़ लाख वर्ष पूर्व किया गया था, त्रेता युगीन पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर अपनी विशिष्ट कलात्मक भव्यता के साथ-साथ अपने इतिहास के लिए भी विख्यात है।

हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, इस प्राचीन सूर्य मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने खुद एक रात में किया था। देश का यह पहला ऐसा मंदिर है जिसका दरवाजा पश्चिम दिशा की तरफ है। इस मंदिर में सात घोड़े वाले वाले रथ पर भगवान सूर्य सवार हैं।

तीन रूपों में हैं स्थित प्रतिमा

इस प्रसिद्ध मंदिर में भगवान सूर्य के तीनों रूपों उदयाचल-प्रात: सूर्य, मध्याचल- मध्य सूर्य और अस्ताचल -अस्त सूर्य के रूप में प्रतिमा स्थापित है। बताया जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत यहीं से हुई थी। छठ पूजा में इस मंदिर का काफी महत्व है।

अद्भुत है इसकी संरचना

आयताकार, वर्गाकार, अर्द्धवृत्ताकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार पत्थर से इस मंदिर को बनाया गया है। इसके निर्माण में गारा या सीमेंट का इस्तेमाल नहीं हुआ है। अभी तक यह रहस्य है कि इस मंदिर का एक रात में कैसे निर्माण किया गया।

यह मंदिर करीब एक सौ फीट ऊंचा है। इसके साथ ही यह प्राचीन मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है।

ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण डेढ़ लाख साल पहले किया गया था। मंदिर के बाद कई शिलालेख भी मौजूद है जिनपर ब्राह्मी लिपि में श्लोक लिखे गए है।