बिहार के इस शहर में होती है बंगाली स्टाइल में दुर्गा पूजा, 1947 से होती आ रही है पूजा

दुर्गा पूजा हर शहर में अलग अलग तरह से मनाया जाता है लेकिन बंगाल में होने वाले पूजा की एक अलग ही पहचान है, देश विदेश से लोग बंगाल सिर्फ दुर्गा पूजा देखने के लिए आते है। लेकिन बिहार में भी एक ऐसा शहर है जहाँ आपको बंगाली तरीके से ही दुर्गा पूजा होते दिख सकता है।

दरअसल जब बिहार और बंगाल साल 1912 में एक दूसरे से अलग हुआ तो बिहार के सीमावर्ती क्षेत्र अररिया में उस वक्त बंगाली समाज डोमीनेंट हुआ करता था। विभाजन के बाद अररिया में रहने वाले बंगाली कलकत्ता शिफ्ट हो गए। उसी वक्त 1947 के करीब समिति दुर्गा मंदिर में पूजा शुरू हुई और विधिवत 1949 में मंदिर की स्थापना भी कर दी गयी।

1947 से होती आ रही है पूजा

ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर समिति दुर्गा मंदिर जिसकी स्थापना तो 1949 में विधिवत हुई, लेकिन मिट्टी की मूर्ति बनाकर आजादी के वक्त ही पूजा शुरू हो गयी थी. सबसे खास बात यह है कि शुरुआती दौर में कलकत्ता में हीं दुर्गा पूजा के लिए चंदा किया जाता. वहीं ड्रामा का रिहर्सल होता और दुर्गा पूजा में पूरा अररिया बंगला संस्कृतिमय हो जाता था।

वहीं, भक्तजन भी इस मंदिर के इतिहास को यादकर बताते हैं कि अररिया के इस मंदिर की काफी महिमा है. पुरानी पीढ़ियों ने जो सांस्कृतिक चेतना की शुरुआत की थी, उसे आज की युवा पीढ़ी साथ लेकर चल रही है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मंदिर तो काफी पुराना है, लेकिन हाल के वर्षों में मंदिर का निर्माण करवाया गया।

आज भी बंगाल का दिखता है प्रभाव

अंग्रेजी हुकूमत का मुख्यालय चूंकि कलकत्ता ही था इसलिए उस वक्त अररिया बंगाल का ही हिस्सा हुआ करता था. इसलिए भी यहां शिक्षा, वकालत और अधिकारियों में अधिकांश बंगाली समाज ही प्रभावी हुआ करते थे. 22 मार्च 1912 में जब बंगाल से बिहार अलग हुआ तो अररिया निवासी बंगाली समाज के लोग बंगाल शिफ्ट हो गए, लेकिन अपनी पहचान और सांस्कृतिक झलक आज भी अररिया में नजर आती है।