दोस्तो आप जानते ही होंगे की बिहार के गया के बोध गया में अधिक संख्या में विदेशी बौद्ध भिक्षु निवास करते है। बौद्ध भिक्षु यहां पर रहकर पूजा पाठ के साथ-साथ अपनी शिक्षा पूरी करते है। गया में अभी एक विशेष चावल की खेती देखने को मिल रही है। कुछ विदेशी बौद्ध भिक्षु इस बार धान की खेती कर रहे है।
लाओस से मंगाए गए स्टिकी राइस के पौधे को भिक्षु खेतों मे लगा रहे है। थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया सहित विभिन्न देशों के बौद्ध भिक्षु खुद खेत में धान की रोपनी का कार्य करते देखे गए। विशेषतः इस चावल का उपयोग विशेष पूजा या खास पर्व पर होता है।
स्टिकी राइस की खेती
बौद्ध भिक्षुओं द्वारा जिस विशेष चावल की खेती की जा रही है उसे स्टिकी राइस कहा जाता है। साथ ही इसे चिपचिपा चावल भी कहते है। खाने के लिए यह चावल बोधगया के होटलों में नहीं मिलता है। जिस कारण थाईलैंड से विशेष स्टिकी राइस मंगवाया जाता है। इसका असर यह पड़ता है कि थाईलैंड से मंगाने की वजह से बोधगया तक पहुंचते पहुंचते इस स्टिकी राइस की कीमत बहुत महंगी हो जाती है।
आखिरकार इस चावल के दामों को देखते हुए बौद्ध भिक्षु वट लाओस मंदिर के पास एक बीघा जमीन को लीज पर लिया है। इस खेत में भिक्षुओं द्वारा इस विशेष चावल की खेती की जा रही है। देखा जाए तो लाओस या थाईलैंड में चिपचिपे चावल की कीमत मात्र 70-80 रुपये प्रति किलोग्राम तक ही है। वहीं बोधगया में पहुंच कर इस चिपचिपे चावल की कीमत बढ़ कर 500-600 रुपये प्रति किलोग्राम हो जाती है।
बांस के बर्तन में पकाया जाता है चावल
वट लाओस मंदिर के केयरटेकर संजय कुमार बताते है कि विदेशी बौद्ध भिक्षुओं ने करीब एक बीघा जमीन लीज पर लेकर उसमे धान की रोपनी की है। धान की खेती करने वालो में थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया बौद्ध भिक्षु शामिल हैं। उन्होंने धान की खेती के लिए गया के रामपुर गांव में एक बीघा जमीन लीज पर ली है। यह चावल की किस्म काफी चिपचिपी होती है। इस कारण इसे बांस के बर्तन मे रखकर वाष्प से पकाया जाता है।
वैसे देखा जाए तो विगत 4 वर्ष गया में इस चावल की खेती हो रही है। पिछले वर्ष मौसम ने इनका साथ नही दिया। बारिश कम हुई उसका असर इस धान की खेती पर पड़ा। पर्याप्त मात्रा में बारिश नहीं होने के कारण चावल की अच्छी पैदावार नहीं हुई। हालांकि कुछ साल पहले इसकी अच्छी खेती हुई थी। पुनः इस वर्ष भी इन बौद्ध भिक्षुओं ने अच्छी उपज की आस से धान की रोपनी किया है ।
इस चावल की खेती का यह है कारण
स्टिकी राइस के बारे में बताते हुए वट लाओस बौद्ध मंदिर के भिक्षु सायसाना बौंथवोंग कहते है कि लीज पर जमीन लेकर एक बीघा में स्टिकी राइस की रोपनी की है। अलग अलग देशों से आए बौद्ध भिक्षु पूजा पाठ और पढ़ाई के साथ साथ खेती का कार्य करते हैं। जो उनकी एक दिनचर्या का हिस्सा है।
उन्होंने यह भी बताया कि लगभग 10 से 12 दिन पहले ही उन्होंने धान की रोपाई की है। यह एक मीठा चावल है, जिसे वाष्प में पकाया जाता है। थाईलैंड या लाओस से चावल आयात करने पर यह बहुत ज्यादा महंगा हो जाता है। यही कारण है की लोग यहीं पर इसकी खेती कर रहे है। जिससे कम कीमत में चावल उपलब्ध हो सके।
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