महज़ एक फिट गहरी है ये ओखली लेकिन हज़ार लीटर पानी डालने पर भी नहीं भरती , जाने क्या है इस मंदिर की कहानी
देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसी अनेक कहानियां प्रचलित हैं, जिन्हें सुनने के बाद आप उनपर विश्वास नहीं कर सकेंगे। पाली जिला मुख्यालय से तकरीबन 105 किलोमीटर दूर भाटून्द गांव में शीतला माता मंदिर है। इस मंदिर में चमत्कारिक ओखली है। यह ओखली मात्र एक फ़ीट गहरी और 6 इंच चौड़ी है। इसके बावजूद इसमें हजारों-लाखों लीटर पानी डालने के बाद भी यह नहीं भरती है। मंदिर के पुजारी पूजा-अर्चना कर पंचामृत की बूंदें डालते हैं तो ओखली का पानी बाहर आ जाता। ओखली में जब तक पंचामृत नहीं डाला जाता है, तब तक चाहे कितना भी पानी डाल दें ओखली नहीं भरती है।

ऐसी ही एक मान्यता राजस्थान के पाली जिले में प्रचलित है। जिले के एक गांव में शीतला माता मंदिर स्थित है, जहां चमत्कारी ओखली है। बताया जाता है कि छोटी सी यह ओखली लाखों लीटर पानी से भी नहीं भरता है, लेकिन पंचामृत की बूंद पड़ते ही पानी लबालब होकर बाहर निकलने लगता है।

इस रहस्य को जानने के लिए लोगों ने कई बार कोशिशें कीं लेकिन वे सफल नहीं हो सके। ओखली को साल में 2 बार (एक तो शीतला सप्तमी और दूसरा ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को) खोला जाता हैं, जिसमें भाटून्द गांव की महिलाओं के साथ आसपास की सैकड़ों महिलाएं सिर पर कलश लेकर दिनभर ओखली में पानी डालती हैं।

शीतला माता एक बच्ची का रूप धारण कर भाटूनंद गांव में पहुंचीं। देवी ने गांव के बीच में ही शादी की तैयारी करने को कहा। ग्रामीणों ने तैयारी शुरू कर दी। मंडप सजाया गया. गाजे-बाजे के साथ बरात आई। आखिरकार वह पल भी आया जब विवाह के मंडप में दूल्हा-दुल्हन फेरे लेने लगे। तीसरे फेरे के दौरान राक्षस आ गया। इसके बाद मां शीतला ने विकराल रूप धारण कर लिया और उसे जमीन पर पटक दिया।

मां शीतला के विकराल रूप को देखकर राक्षस थर-थर कांपने लगा और जीवन की भीख मांगने लगा। माता ने अंतिम इच्छा पूछी तो बोला की मुझे साल में दो बार बलि और पीने के लिए मदिरा चाहिए। गांव ब्राह्मणों का था, इसलिए माता ने उसकी मांग को अस्वीकार कर दिया। तब उसे बलि के रूप में सूखा आटा व गुड़, दही इत्यादि का भोग दिया जाता है। मदिरा की जगह पर राक्षस को पानी पिलाया जाता है। शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा के दिन यहां मेला लगता है।

इस कहानी पर सिरोही दरबार ने विश्वास नहीं किया। वे स्वयं आए और मंदिर के सामने स्थित बावड़ी और अन्य कुओं से लगातार पम्प से पानी ओखली में डाला गया, लेकिन ओखली नहीं भरी। गलती मानते हुए दरबार ने मंदिर का परकोटा बनवाया और मां से माफ़ी भी मांगी।

