बिहार के इस गाँव में 200 सालों से नहीं मनाई जाती है होली, वजह जान चौक जाएंगे आप
होली के दिन यहां के ग्रामीण न तो को दूसरे को रंग गुलाल लगाते हैं और न ही घरों में पुआ पकवान ही बनाते हैं। यहां तक की आस पड़ोस के गांव को लोग भी इस गांव के लोगों पर रंग अबीर नहीं डालते हैं।

ग्रामीणों के मुताबिक, किंवदंती है कि गांव में एक पति-पत्नी रहते थे। होली के दिन पति की मृत्यु हो जाती है, तो गांव के लोग पति के दाह संस्कार के लिए शव को लेकर जाने लगते हैं। लेकिन, शव अर्थी के ऊपर से बार-बार गिर जाता था।

इधर, पत्नी को लोग घर में बंद किए हुए होते हैं। गांववालों ने जब पत्नी को घर का दरवाजा खोल कर निकाला तो पत्नी दौड़कर पति के अर्थी के पास पहुंचकर कहती है कि वह भी अपने पति के साथ जल कर सती होना चाहती है। यह बात सुनकर गांववालों ने गांव में ही चिता को तैयार कर दी।

तभी अचानक पत्नी के हाथों के छोटी उंगली से आग निकलती है और उस आग से पति-पत्नी की चिता जल उठती है। बाद में ग्रामीणों के सहयोग से सती स्थल पर मंदिर का निर्माण कराया गया और लोग वहां पूजा करने लगे। तब से यह परंपरा चली आ रही है कि इस गांव के लोग होली नहीं मानते हैं।

ग्रामीण रामस्वरूप, महेश, विभा देवी के अनुसार, जिसने भी चोरी छिपे यहां होली मानने को कोशिश की उसके यहां कुछ न कुछ अनिष्ट हो जाता है।

इस कारण यहां के लोग तो होली नहीं मनाते हैं। इस गांव से निकल कर जो लोग बाहर बस गए हैं वो भी होली नहीं मानते हैं और इस परंपरा को सख्ती से पालन करते हैं।

कुछ ग्रामीणों ने बताया कि इस कारण इस गांव का नाम ही सती गांव रख दिया गया। इस गांव में पकवान होली के बदले चैती रामनवमी के अवसर पर पकवान बनाते हैं।


